bachpan ke din shayari in hindi

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bachpan ke din shayari in hindi (बचपन के दिन शायरी इन हिंदी)

हेल्लो दोस्तों आज हम आपको आपके बचपन की याद दिलाने वाले है. बचपन का समय बहुत ही अच्छा होता है हम सब की life में . हमको बचपन बहुत याद आता है जब हम बड़े हो जाते है तब. तो आइये आज हम कुछ ख़ास bachpan ke din shayari in hindi (बचपन के दिन शायरी इन हिंदी) लेकर आये है –

bachpan ke din shayari in hindi

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♥️╣bachpan ke din shayari in hindi (बचपन के दिन शायरी इन हिंदी)╠♥️:

  1. कितनी हसीं थी वो मोहोब्बत “बचपन” की…

    मेरे ना देखने पर सबसे रूठ जाता था वो…

    🥰🥰🥰❤️❤️❤️


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  2. ले चल मुझे “बचपन” की उन्हीं वादियों में ए जिन्दगी…

    जहाँ न कोई जरुरत थी…

    और न कोई जरुरी था…

    💔💔💔💔


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  3. लिखना चाहती हूँ तुझे ऐ “बचपन“…

    पर कलम है कि रो पड़ती है…

    💔💔💔💔


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  4. लाड भी उनके पहेली की तरह होते हैं….,,

    बाप भी बचपन की सहेली की तरह होते हैं..!!

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  5. इश्क़ अगर बचपन में हो तो वजह ख़ास चाहिए,

    अगर जवानी में हो तो एहसास चाहिए,

    अभी भी टाइम हे जल्दी कर लो,

    वरना बुढ़ापे में करोगे तो च्यवनप्राश चाहिए!!

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  6. बचपन मे भाई बहन दिन मे 5 बार नाराज़ होते और राजी हो जाते थे,,,

    बड़े होकर एक बार नाराज़ होते है तो अक्सर ज़ानाजो मे मिलते है…!!😔


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  7. बचपन की मीठी-मीठी सी एक याद चॉकलेट,
    है मेरी इस ग़ज़ल की भी बुनियाद चॉकलेट ।

    दुनिया के सारे ज़ायके जब बे-मज़ा लगे,
    इंसान ने की होगी तब इज़ात चॉकलेट ।

    हमसे तो बस कलाम बस तेरी उंगलियों से था,
    खाई नहीं है हमने तेरे बाद चॉकलेट ।

    अफ़सुर्दगी में मेरा सहारा बनी है और,
    ख़ुशियों में करती आई है कमाल चॉकलेट ।

    उसके लबों की बात ही मत पूछिये जनाब,
    उसके लबों के आगे है बे-स्वाद चॉकलेट ।

    काश उन सभी के ख़्वाब हक़ीक़त बना सके अंजुम,
    ख़्वाबों में जिनके लाए अक्सर परीज़ाद चॉकलेट ।

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  8. ज़ालिम आज भी आँसु निकलते है इन आँखो से ….

    पर अफ़सोस वो बचपन वाला माँ का पल्लू नहीं है …


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  9. याद आता है…
    बहुत बचपन अपना 😊वो कच्ची सड़के बिखरा सावन
    शायद कोई ख्वाहिश अब भी रोती है 😓
    मेरे अन्दर भी बारिश होती है 😢😢


  10. _मिट्टी भी जमा की और खिलौने भी बना कर देखें_

    ज़िन्दगी कभी न मुस्कुराई फिर बचपन की तरह।

bachpan ke din shayari in hindi
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  • 🙏🏻🙏🏻 किसी के साथ खूब हँसे ,
    किसी के पीछे बहुत रोये ,
    वो बचपन ही था
    जहाँ हम हर हाल में चैन से सोये…. 🙏🏻🙏🏻

     


  • बचपन भी कितना अजीब होता है…
    वो की गई शरारतें न जाने कब यादों का रूप ले लेती है पता ही नही चलता…
    न जाने कितने सारे खेल हम खेला करते थे…
    प्यार के बारे में उन दिनों जानते नही थे…
    स्कूल में उन दिनों Present Indefinite(ता है,ती है ) पढ़ाया जा चुका था और हम आई लव यू को ट्रांसलेट करने लगे थे…
    इससे ज्यादा प्यार को नही जानते थे
    हाँ कुछ अच्छा लगता है प्यार के बाद ये जानते थे…
    हकीकत से काफी दूर थे हम…

     


  • जिम्मेदारिया जब कंधो पर पडती है,
    तो अक्सर बचपन याद आता है !!

     


  • मैं अपने बचपन के दिनों से,
    चाय और पार्ले जी छीन लाया हूँ॥
  • bachpan ke din shayari in hindi (बचपन के दिन शायरी इन हिंदी)
    bachpan ke din shayari in hindi (बचपन के दिन शायरी इन हिंदी)

    याद आता है
    बहुत बचपन अपना

    वो कच्ची सड़के
    बिखरा सावन
    शायद कोई ख्वाहिश अब भी रोती है
    मेरे अन्दर भी बारिश होती है


    “बचपन” पर एक सुंदर कविता, जिसके एक-एक शब्द को बार-बार पढ़ने को मन करता है –

    क्या दिन थे वे “बचपन” के…..

                              तोतली जुबान थी, फिर भी सबको प्यार था

                               कोई डाटता नहीं, हर जगह सत्कार था

    अब तो जुबान भी सुधर गई।

    फिर भी बोलने पर एतराज हैं।

    कोई सुनता नहीं,सभी नाराज हैं।

                 पेट भरी थी,फिर भी मां को इंतजार था

               खाने का मन न था, पर मां के हाथ में निवाला तैयार था।

    अब तो पेट भी खाली हैं, लेकिन…

    कोई इंतजार करने वाला ना है…

    आज भूख भी हैं, पर भोजन तैयार ना है।।

                                   अब कुछ ना है सिवाय चुभन के…….

                                   क्या दिन थे वे “बचपन” के…………..

    मिट्टी के हम खिलौने बनाते थे।

    बड़े प्यार से अपने घरौंदे में सजाते थे।

                             अब तो गृहस्थी का सामान जुटाते हैं।

                            कैसे काट–कपट कर अपने घरों को चलाते हैं।

    मां को बाल बनाने के लिए पूरे घर में दौड़ाते थे

    दूध की इक–इक घूट पीने पर,

    मानो मां पर एहसान जताते थे।

                              अब बाल बनाने का समय ही नहीं,

                              बाल छोटे करा लेते हैं।

                               दूध को छोड़ो,रोटी खाते हुए

                               ऑफिस निकल  जाते हैं।।

    आज खुद को तलाशती हूं दर्पण में…….

    क्या दिन थे वे “बचपन” के…………..  

    खेलते हुए गिर जाते थे, और…

    मां के स्नेहिल चुंबन से , सारे दर्द भूल जाते थे।

    टोली में झगड़ा होता ,तो मां–बापू मेरे पक्ष से

    बच्चों से झगड़ा मोल लेते थे…

                          अब खुद गिरते है ,खुद ही संभल जाते हैं

                        और चोट लगने पर मेडिकिट लेकर बैठ जाते हैं।

    आज सच्चाई के लिए बीच चौराहे पर

    खड़े होकर चिल्लाने पड़ते हैं।

    लेकिन एक भी गवाह ,

    आगे नही आते है।।

                   इक युद्ध छिड़ती है मानो अंतर्मन में…….

                   क्या दिन थे वे “बचपन” के…………

    बापू के कंधे पर बैठ, मेले में जाते थे

    गुड़ियां, चर्खी और  खिलौने लाते थे।

    मनचाहा न दिलाने पर , लेट कर रोने लगते थे।

                           आज समय हमसे छूट रहा हैं

                            ट्रेनों और बसों के लिए धक्के खा रहे हैं

                            मांग तो बहुत है मेरे ,जानती हूं…..

                             पर रोने पर भी कोई पूरा न करेगा।।

    कल न ही कोई चिन्ता थी और न ही जिम्मेदारी।

    बस हंसना–रूठना और यारी।।

                              अब तो उलझने ही हैं सारी…..

                               पता नही कैसे सुलझेगी हमारी।।

    लगाव था परायों के अपनेपन में…..

    क्या दिन थे वे “बचपन” के…… 

                               छोटे थे कितना हर्ष व उमंग था

                                कहानियां सुनने और सुनाने का,

                                अपना एक अलग ही ढंग था।।

    आज एक बेरंग जिंदगी जी रहे हैं।

    न कोई उल्लास, ना कोई रंग हैं।

    “बचपन” में वो बारिश का पानी और

    उस  पर तैरती कागज की नाव हमारी।

    और नीम की डाल को छूती हुई झूला हमारी।।

            आज तरक्की की होड़ ने छीन लिए हैं मुझसे

           उन पलों की अनुभूतियां, और उन्हें फिर से जीने की इच्छा

    एक झूठे शान की तलाश कर रहे जीवन में…

    क्या दिन थे वे “बचपन” के…..     

                        हमे सुलाने के लिए मां लोरी सुनाती थी।

                        फिर भी ना सोते तो बिल्लियों से डराती थी।।

    आज सोना चाहते हैं, पर नीद नहीं है।

    नीद आ जाए इसके लिए गोलियां खाते हैं।।

                        रूठते मान जाते, हमेशा हंसते थे ।

                        दर्द होता तो खुल कर रोते थे।।

    आज भी हमेशा हंसते हैं, लेकिन—

    खुद के दर्द को छिपाते हैं।

    रोना चाहते हैं,  पर मुस्कुरा कर दिखाते हैं

                        आज तकलीफ होती हैं क्षण–क्षण में…… 

                         क्या दिन थे वे “बचपन” के……    

    वो पगडंडियों पर  उड़ती हुई तितली और

    जुगनू को मुठ्ठी में बंद करना

    बारिश में भीगना, और आंधी आने पर आम बिनना

                                         कितने प्यारे थे वो पल ।

                                         हम प्रकृति के कितने करीब थे।।

    खुद के बनाए इस कृत्रिम जीवन में ,

    अब डर लगता है इसमें जीने से।

    इस चकाचौध में आगे कहां जाऊंगी,

    कुछ दिखाई नहीं देता।

                              प्रकृति के करीब जाना चाहती हूं।

                              “बचपन” में खो जाना चाहती हूं।।

    जीना चाहती हूं, अपने लड़कपन में…..

    क्या दिन थे वे “बचपन” के……


    बचपन पर  jokes –  😀 

    मेरा बचपन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा ।

    स्कूल जाता था, तो मास्टरजी पीटते थे,

    नहीं जाता था, तो घरवाले पीटते थे। 😁😎


    ये लड़कियां बचपन में उतना नखरे नहीं करती

    जितना गर्लफ्रेंड का पद मिलने पर करती हैं….😜😜😜


    लगता है हमारी हथेली में love line है ही नही..
    साला बचपन में जलजीरा चाटते चाटते उसको भी साफकर गये
    😭 💔


    काश कोई मेरी इलायची को भी जाकर बता दें..

    कि उसका लौंग बचपन से उसका इंतजार कर रहा हैं…!!
    🥺🥺😭😭😭😭


    पहले के जमाने में प्यार और ब्रेकअप कम होने का एक कारण यह भी था कि

    पहले बचपन में ही शादी कर दी जाती थी

    बाल विवाह के फायदे 😂🤟


    शुक्र है बचपन में ही मैंने तैरना सीख लिया था

    इसलिए तो किसी के प्यार में डूबा नाही😜🤣🤣समझदार हूँ की नाही ??


    बचपन की यादे.. 🤗

    हमारे बचपन में अमीर उसे माना जाता था ।

    //

    //

    जिसके पैर में लाइट वाले जूते होते थे..!! 😜🤪


    ये लड़कियों की फर्जी आईडी चलाने वाले लड़के वही है,

    🏇🏻®🤴🏻

     

    जिन्हे बचपन में बहन की फ्रॉक और मम्मी की बिंदी लगाने का शौक चढ़ गया था।😇


    साला बचपन ही ठीक था कम से कम

    🏇🏻®🤴🏻

     

    लड़कियाँ गोद मे उठा कर किश तो देती थी
    😂🤣


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