इन सात बीमारियों में न खाएं एंटीबायोटिक्स, हो सकती है समस्या

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एंटीबायोटिक्स क्या हैं?

एंटीबायोटिक्स दवाएं हैं जो बैक्टीरिया के कारण होने वाले संक्रमण को रोकने में मदद करती हैं। वे ऐसा जीवाणुओं को मारकर या उन्हें स्वयं की नकल करने या पुनरुत्पादन से रोककर करते हैं।

एंटीबायोटिक शब्द का अर्थ है “जीवन के विरुद्ध।” आपके शरीर में कीटाणुओं को मारने वाली कोई भी दवा तकनीकी रूप से एक एंटीबायोटिक है। लेकिन ज्यादातर लोग इस शब्द का इस्तेमाल तब करते हैं जब वे उस दवा के बारे में बात कर रहे होते हैं जो बैक्टीरिया को मारने के लिए होती है।

इससे पहले कि वैज्ञानिकों ने 1920 के दशक में पहली बार एंटीबायोटिक दवाओं की खोज की, बहुत से लोग मामूली जीवाणु संक्रमण से मर गए , जैसे स्ट्रेप थ्रोट । सर्जरी भी जोखिम भरी थी। लेकिन 1940 के दशक में एंटीबायोटिक्स उपलब्ध होने के बाद, जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई, सर्जरी सुरक्षित हो गई, और लोग जीवित रह सके जो घातक संक्रमण हुआ करते थे।


इन सात बीमारियों में न खाएं एंटीबायोटिक्स :-

एंटीबायोटिक्स
एंटीबायोटिक्स

बिना डॉक्टरी सलाह के एंटीबायोटिक्स लेने के कारण हर साल दुनियाभर में करीब 20 लोगों की मृत्यु होती है। जब कोई व्यक्ति बिना जरूरत के एंटीबायोटिक्स ले लेता है तो उस व्यक्ति के शरीर में उस दवा का रेजिस्टेंस हो जाता है और जब उसे कोई बीमारी होती है जिसमें एंटीबायोटिक्स देना होता है तो वह काम नहीं करती है।

इनमें न लें एंटीबायोटिक्स, लिवर-गुर्दे को भी नुकसान

सामान्य सर्दी-खांसी, जुकाम, गला खराब होना यानी अपर रेस्प्रेटरी डिजीज और जितने भी मच्छर जनित रोग होेते हैं जैसे मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जीका, इनमें एंटीबायोटिक्स का काम नहीं होता है। डेंगू में एंटीबायोटिक्स लेने से ब्लीडिंग की आशंका बढ़ जाती है जबकि मलेरिया में देरी से आराम मिलता है। चिकनगुनिया में एंटीबायोटिक्स देने से फेफड़ों, गुर्दे और लिवर को नुकसान होने की आशंका रहती है।

इसके साथ ही वायरल हेपेटाइटिस जिसे सामान्य भाषा में पीलिया कहते हैं। यह बीमारी वायरस से होती है और मुख्य रूप से साफ-सफाई का ध्यान न रखने से यह बीमारी होती है। सामान्य बीमारियों स्क्रब टाइफस के कुछ मामलों और टाइफाइड में एंटीबायोटिक्स देना फायदेमंद होता है। अगर कोई इन बीमारियों में एंटीबायोटिक्स लेता है तो उसको नुकसान होने की आशंका रहती है।

रेजिस्टेंस के नुकसान

जब कोई एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस हो जाता है तो वह दवा दोबारा जरूरत पड़ने पर काम नहीं आती है। इसके लिए मरीज को हाइ डोज वाले एंटीबायोटिक्स देने की जरूरत पड़ती है। इससे न केवल दवा की कीमत कई गुना तक बढ़ जाती है बल्कि उसके साइड इफेक्ट भी बढ़ते हैं और मरीज के रिकवरी की आशंका पहले से कम हो जाती है।

क्या कहती है रिसर्च

लांसेट रिसर्च के अनुसार भारत में सबसे ज्यादा एंटीबायोटिक्स का दुरुपयोग हो रहा है। एंटीबायोटिक्स रजिस्टेंस होने से नई-नई एंटीबायोटिक्स बनाने की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। इससे न केवल ज्यादा खर्च बढ़ेगा बल्कि बीमारियों को नियंत्रण में करने में भी दिक्कत होगी।

मन से 2-3 माह में न लें दोबारा

" कोई भी एंटीबायोटिक्स 2-3 माह के अंतराल पर ही लें। इस दौरान इसका असर होता है और रिपीट करने से इसके प्रति रेजिस्टेंस होने की आशंका होती है। लेना पड़े तो ग्रुप बदलवा लें।"

सेकंड्री इंफेक्शन से बचाने के लिए भी देते

कई बार कुछ मरीज जैसे डायबिटीज या कोई दूसरी क्रॉनिक बीमारियों से ग्रसित है तो उन्हें भी सर्दी-जुकाम या गले के खराश में एंटीबायोटिक्स दिया जाता है, उन्हें सेकंड्री इंफेक्शन से बचाव के लिए ऐसा किया जाता है क्योंकि ऐसे लोगों की इम्युनिटी पहले से कमजोर होती है।

बैक्टीरिया की क्षमता से तय होता है कोर्स

इसका कोर्स तय होता है जैसे 3,5,7, 10 और 14 दिन आदि। डॉक्टर बैक्टीरिया की क्षमता को जानते हुए कोर्स तय करते हैं। निर्धारित कोर्स से कम या ज्यादा मात्र में लेने से रेजिस्टेंस होता है। कई बार मरीज ठीक महसूस होने पर कोर्स बीच में छोड़ देता है। ऐसा न करें।

एंटीबायोटिक्स लेते हैं तो इनका रखें ध्यान

बिना डॉक्टरी सलाह के कोई भी दवा न लें। एंटीबायोटिक्स ले रहे हैं तो पानी की मात्रा बढ़ा दें ताकि इसका दुष्प्रभाव लिवर और गुर्दे पर न पडे़। इसके साथ आहार में प्रोटीन की मात्रा भी अधिक लेनी चाहिए, इससे इम्युनिटी बढ़ती है और दवा भी ज्यादा प्रभावी होती है।


FAQ :

सबसे अच्छी एंटीबायोटिक क्रीम कौन सी हैं?

पॉलीस्पोरिन, नियोस्पोरिन, और बैकीट्रैकिन सभी OTC एंटीबायोटिक मलहम हैं जिनका उपयोग आप मामूली कटौती या खरोंच के संक्रमण के इलाज या रोकथाम में मदद के लिए कर सकते हैं।